Sunday, April 2, 2017

मेरी डायरी

कुछ लोग कहते हैं कि सपने ऐसी किताब हैं जिन्हें नींद के दौरान पढ़ा जाता है। यह किताब पहले से लिखी हुई और तैयार होती है, लेकिन यह जरूरी नहीं कि इसे हम पूरी पढ़ लें।


ज्यादातर ऐसी किताबें अधूरी ही रहती हैं। मनोविज्ञान, धर्मग्रंथ और कहानियां अपने नजरिए से सपनों का मतलब बताते हैं। अक्सर हम बचपन से ही सपने देखते रहते हैं। इनमें से कुछ यादगार बन जाते हैं तो कुछ अगले दिन चाय के दौरान भी याद नहीं आते।


मैं नहीं जानता कि सपने क्यों आते हैं, और उनका कोई मतलब होता भी है या नहीं। मुझे बहुत कम सपने आते हैं लेकिन तीन सपने ऐसे हैं जो मैंने कई बार देखे हैं। मैं उन्हें पांच साल की उम्र से ही देखता आ रहा हूं।


इस बात का जिक्र करना चाहूंगा कि मेरे सभी सपने सच नहीं होते। ईश्वर न करे कि हर व्यक्ति का हर सपना सच हो, क्योंकि अगर ऐसा होता तो दुनिया में भारी बवाल हो जाता। मगर मैंने कई सपनों को सच होते देखा है। जब वे हकीकत में तब्दील हुए तो किसी साफ दिन की रोशनी की तरह लगे।


एक बार मेरे गांव के श्मशान घाट में कोई निर्माण कार्य चल रहा था। मैं यूं ही उसे देखने के इरादे से गया तो मेरे साथियों ने मुझसे कहा कि दीवार की कच्ची सीमेंट पर ऐसी कोई बात लिखूं जो यहां आने वाले लोगों को अच्छी सीख दे। मैंने उस पर स्वामी विवेकानंद का एक प्रसिद्ध कथन लिखा- मृत अतीत को जला दो, क्योंकि अनंत भविष्य तुम्हारे सामने है।


रात को जब मैं सो रहा था तब मैंने सपना देखा। सपने में मेरे एक प्रिय व्यक्ति को श्मशान घाट में बिल्कुल उदास खड़े देखा। वह दीवार पर लिखी बातें पढ़ रहा था। सुबह मालूम हुआ कि उसके किसी परिजन की मृत्यु हो गई है। सुनकर मुझे झटका-सा लगा।


दूसरी बार मैंने सपने में खुद को एक कब्र के पास खड़ा पाया। मेरे हाथ में फूल था और मैं उसकी कब्र पर फूल चढ़ा रहा था। मैं कभी कब्रिस्तान नहीं गया था। मेरा ऐसा कोई परिचित भी नहीं था जो मुस्लिम या ईसाई हो।


ऐसे में कब्र पर फूल चढ़ाने का सपना बहुत अजीब था। अगली सुबह जब अखबार पढ़ा था तो पहले पन्ने पर बेनजीर भुट्टो के कत्ल की खबर थी। उसे पढ़ते ही मेरे बदन में एक ठंडी लहर-सी दौड़ गई।


पाकिस्तान के तमाम राजनेताओं में मैं बेनजीर को सबसे ठीक मानता था। उनमें भारत के लिए उतनी नफरत नहीं थी, जितनी वहां के और राजनेताओं व फौजी जनरलों में है। इसलिए मैं बेनजीर के बारे में पढऩा बहुत पसंद करता था। उनकी मौत से मुझे बहुत दुख हुआ।


आज रात मैंने फिर एक सपना देखा जो मैं बचपन से अब तक कई बार देख चुका हूं। इसमें कुछ भी नहीं बदलता। वही पात्र, वही जगह और वही मैं। यह एक दिलचस्प घटना है। जहां तक मुझे याद है, मैं इसे 40 बार से तो ज्यादा देख ही चुका हूं।

पहले सपने में मुझे बहुत बड़ी, किले जैसी एक इमारत दिखाई देती है। उसकी बनावट किसी प्राचीन महल की तरह है लेकिन अब वह जर्जर होकर अपना रंग खो चुकी है। मैं इसमें गोल-गोल सीढ़ियां चढ़कर ऊपर की मंजिल पर जाता हूं।


मुझे ताज्जुब होता है कि वहां अब कोई नहीं है। इमारत खाली हो चुकी है। फिर मैं इसके पीछे के भाग में जाता हूं जहां एक फव्वारा है। उसमें अब पानी नहीं आता। वहां बैठने के लिए पत्थर की कुर्सियां हैं। इसके बाद मैं सीढ़ियां चढ़कर सबसे ऊपर की मंजिल पर जाता हूं और वहां से पूरे शहर को देखता हूं।


महल के सामने थोड़ी दूरी पर मुझे पहाड़ दिखाई देता है। शहर में कुछ लोग सड़कों पर चल रहे हैं। उन्हें मैं आवाज लगाता हूं और किसी को कुछ सुनाई नहीं देता। मैं दुखी मन से किले के हर कमरे का जायजा लेता हूं। आज रात (10 सितम्बर, 2013) को भी मुझे यही सपना आया।


दूसरे सपने में मैं एक पहाड़ देखता हूं। उसके आसपास विशाल रेगिस्तान है। उस पहाड़ में गुफा है। वहां एक खूबसूरत आदमी बैठा है। रंग उसका गोरा है, चेहरा मुस्कुराता हुआ, घुंघराले बाल और घनी काली दाढ़ी।


वह बहुत स्नेह से मुझे देखता है। उसे देखकर मुझे डर महसूस नहीं होता। फिर वह कुछ कागज मुझे थमाता है। मैं उन्हें पढऩे की कोशिश करता हूं कि वह मुझे धक्का मार देता है। मुझे डर लगता है कि पहाड़ी से नीचे गिरा तो मेरी जान चली जाएगी, मगर जल्द ही मैं उडऩे लगता हूं। नीचे काफी संख्या में लोग खड़े हैं। वे मुझे देखकर तालियां बजाने लगते हैं। मैं उड़ता रहता हूं।


तीसरे सपने में मुझे एक पुरानी बनावट का शहर दिखाई देता है। मेरे साथ कई लोग चल रहे हैं। शायद वह जगह एक बाजार है जिसमें सुंदर तरीके से सजावट की गई है। अचानक मिठाई की दुकान से एक व्यापारी आकर मुझे नमस्कार करता है और अपनी दुकान में बैठने का आग्रह करता है।


मेरी उससे क्या बातचीत होती है, यह याद नहीं। मैं आगे बढ़ता हूं तो लोग मुझे नमस्कार करते हैं। उस बाजार के सबसे आखिर में एक घर है। मैं उस घर में प्रवेश करता हूं तो एक युवती वहां किताब पढ़ रही होती है।


शायद मेरा आना उसे अच्छा नहीं लगा, इसलिए वह किताब एक ओर रखकर सामने पर्दा लगा देती है। मैं घर से बाहर निकलकर अपने लोगों के साथ आगे बढ़ जाता हूं।


कुछ दिनों पहले मैंने मेरे एक फेसबुकिया दोस्त से इसका जिक्र किया तो उसने सपनों का मतलब कुछ यूं बताया - चूंकि तुम एक लाइब्रेरी चलाते हो, इसलिए तुम्हें सपने में किताब दिखाई देती है। चूंकि तुम्हें मिठाई पसंद है, इसलिए सपने में भी मिठाई की दुकान का चक्कर लगाते हो।


मेरी सलाह है कि तुम सपने को जारी रखो। किताब मिले या न मिले, तुम्हें एक दिन मिठाई जरूर मिल जाएगी। उसने मिठाई और किताब को जिस तार्किक ढंग से जोड़ा वह लाजवाब है लेकिन, शायद मेरे सपने का कोई तो मतलब रहा होगा।

- राजीव शर्मा -

गांव का गुरुकुल से

मेरी डायरी

(10 सितम्बर, 2013)

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